मध्य प्रदेश के बाद अब पंजाब में भी कांग्रेस यादवी संघर्ष की शिकार होती नजर आने लगी है। मध्य प्रदेश में मुख्यमन्त्री श्री कमल नाथ के खिलाफ जहां सिंधिया राजघराने के चश्मोचिराग ने दुंदुभी बजा रखी है तो पंजाब में पटियाला शाही खानदान के कुंवर साहिब को अपने ही सिपहसालार से चुनौती मिली है। पंजाब में चल रही कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के खिलाफ कांग्रेस के ही विधायक व भारतीय हाकी टीम के पूर्व कप्तान स. परगट सिंह ने चेकपोस्ट तोड़ने की तीव्रता वाला गोल दाग दिया। स. परगट सिंह ने शराब और खनन माफिया का मुद्दा उठाते हुए अपनी ही सरकार पर धावा बोला है। उन्होंने कांग्रेस सरकार की नाकामियों को खुले तौर पर उजागर करते हुए न सिर्फ मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को जानकारी दी बल्कि उन्हें चुनावी घोषणापत्र में जनता से किए वादे भी याद दिलाए। उन्होंने कैप्टन को भेजे पत्र की एक प्रति कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी भेजी है। वहीं, परगट सिंह का कहना है कि उनके द्वारा मुख्यमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष को भेजा गया पत्र पार्टी का अन्दरूनी मामला है। यह पत्र भी आन्तरिक ही था लेकिन यह किसी तरह मीडिया में लीक हो गया है या कह दें कि कर दिया गया। परगट सिंह ने मुख्यमन्त्री को भेजे पत्र में लिखा है कि वे दिसम्बर 2019 में भी पत्र लिख चुके हैं। उसमें उन्होंने उस समय भी नशे के खिलाफ राज्य सरकार की विफलता का मामला उठाया थादूसरी ओर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ व मुख्यमन्त्री के बीच मनमुटाव एक बार फिर उजागर हो गए हैं। अपने नए पत्र में परगट सिंह ने कहा है कि सरकार राज्य में शराब और खनन माफिया पर लगाम कसने में असफल रही है। माफिया राज ठीक उसी तरह चल रहा है जैसे पहले चल रहा था। राज्य में भ्रष्टाचार पर भी अंकुश नहीं लगाया जा सका। उन्होंने कैप्टन को चुनाव घोषणापत्र में जनता के किए वादों की याद भी दिलाई और कहा कि जनता से किए वादे पूरे नहीं हो सके हैं। विधायक परगट सिंह द्वारा अपनी सरकार पर लगाए गए आरोप अप्रत्याशित भी नहीं हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में तलवन्डी साबो में प्रचार अभियान के दौरान कैप्टन अमरिन्दर सिंह गुटका साहिब (धर्मग्रन्थ) की सौगन्ध लेते हुए सरकार आने पर चार सप्ताह के भीतर राज्य से नशा, भ्रष्टाचार, अवैध खनन माफिया, शराब माफिया को पूरी तरह समाप्त करने का संकल्प लिया था परन्तु उनके वायदों का परिणाम क्या निकला, उसका पटाक्षेप खुद उनके ही सहयोगी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की नीतियों का खुला विरोध करने व सरकार पर जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने का आरोप लगाने वाले स. परगट सिंह कांग्रेस के पहले विधायक नहीं हैं। उनसे पहले स. सुरजीत धीमान, स. रणदीप सिंह, स. निर्मल सिंह, स. हरदयाल कंबोज, श्री मदन लाल जलालपुर, स. राजिन्दर सिंह और यूथ कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे विधायक स. राजा वडिंग भी सरकार के कामकाज पर सवाल उठा चुके हैं। वैसे स. परगट सिंह को पूर्व मंत्री स. नवजोत सिंह सिद्ध का करीबी साथी माना जाता है। सिद्ध बीते साल जुलाई में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के मनमुटाव के चलते मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे चुके हैं। केवल इतना ही नहीं राज्यसभा सदस्य व पूर्व पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष स. प्रताप सिंह बाजवा सार्वजनिक तौर पर कैप्टन अमरिन्दर सिंह को हटाने की मांग कर चुके हैं। तथ्यों का सिंहावलोकन किया जाए तो कांग्रेस सरकार की असफलताओं को लेकर स. परगट सिंह की स्वीकारोक्ति गलत भी नजर नहीं आ रही। राज्य में राजस्व बढ़ाने के लिए वित्तमन्त्री स. मनप्रीत सिंह बादल के पास कोई सुदृढ़ योजना दिखाई नहीं दे रही। राज्य में सरकारी भर्तियों पर अघोषित रोक लगी है। देश में शराब की खपत में पंजाब पहले स्थान पर है परन्तु इससे प्राप्त होने वाला राजस्व पिछले तीन सालों में 5 हजार करोड़ से आगे बढ़ नहीं पाया है। एक अनुमान के अनुसार, कराधान की चोरी के चलते ही राज्य को हर साल 1200 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सरकार में आने से पूर्व निगम बना कर शराब के व्यवसाय को नियन्त्रित करने का वायदा किया था परन्तु इस दिशा में कुछ नहीं किया गया। भारत का अन्न का कटोरा कहलाने वाला पंजाब पिछले काफी समय से कृषि संकट से दोचार होता आ रहा है। पिछले 17 सालों में 11659 किसानों द्वारा की गई आत्महत्या का आंकड़ा अपने आप में यह बताने में सक्षम है कि यहां कृषि व कृषक कहां खड़ा है। कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने से पहले किसानों का सारा ऋण माफ करने का वायदा किया था परन्तु माफी के नाम पर केवल 5००० कांग्रेस करोड़ करोड़ ही किसानों को मिला। किसान ठगा सा महसूस कर निरन्तर परेशानियों में घिरता जा रहा है। राज्य में खनन माफिया का अंकुश लगाने का दावा करने वाली कैप्टन सरकार ने सत्ता में आने के बाद राज्य को 7 क्षेत्रों में विभक्त किया और 600 करोड़ रूपये राजस्व का लक्ष्य निर्धारित कियाआज सच्चाई यह है कि राज्य में खनन न केवल पहले की तरह बरकरार है बल्कि सुरसा के मुंह की भान्ति बढ़ता जा रहा है और सरकार एक सौ करोड़ का राजस्व भी नहीं जुटा पाई। खनन नीति की तरह परिवहन नीति, केवल अंतरताना नीति भी किसी तरह सफल नहीं हो पाई। भ्रष्टाचार यथावत जारी है और लोगों को सड़क, पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं से दो चार होना पड़ रहा है। विगत अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल के दौरान राज्य में मूलभूत ढांचागत विकास की गति भी मद्धम पड़ चुकी है। राज्य की विगत शिअद-भाजपा गठजोड़ के नेतृत्व वाली स. प्रकाश सिंह बादल सरकार के खिलाफ नशा और राज्य में हुई धार्मिक ग्रन्थों से बेअदबियों की मुद्दे पर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार इन मोर्चों पर शून्य प्रदर्शन ही कर पाई है। अभी तक बेअदबी की घटनाओं की सच्चाई सामने नहीं आ पाई और नशे का तो हाल यह है कि उड़ता पंजाब्य अब लोटपोट होता भी नजर आने लगा हैनशे पर रोक के नाम पर शुरूआत में कांग्रेस सरकार ने कुछ करने का प्रयास किया परन्तु कैप्टन सरकार की सारी बहादुरी छोटे-मोटे नशेड़ियों को पकड़ने में ही खप गई। नशे के तालाब के मगर आज भी खुले में विचरन करते दिख रहे हैं। पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह पर पहले भी यह आरोप लगते रहे हैं कि उनका जनसाधारण तो दूर, अपने विधायकों से भी सीधा सम्पर्क नहीं है। यहां तक कि राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष तक को वे मिलने का समय तक नहीं देते। राज्य में विद्युत उत्पादन कंपनियों के साथ हुए समझौतों व ताप विद्युतगृहों को लेकर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ ने 9 फरवरी को तलवन्डी साबो जिला बठिण्डा के वनांवाली गांव जाकर लोगों की समस्याएं सुनीं। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलवाया कि वे लोगों की समस्याओं को मुख्यमंत्री तक पहुंचाएंगे। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री कार्यालय से मिलने का समय मांगा परन्तु तीन दिन बीत जाने के बाद भी कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अपने प्रदेशाध्यक्ष को दर्शन देना उचित नहीं समझा। राजनीति के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस सरकार महंगी बिजली के मोर्चे पर निरन्तर घिरती जा रही है। इसको लेकर कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ भी कई उन अधिकारियों पर नजला झाड़ चुके हैं जो मुख्यमन्त्री के नजदीकी माने जाते हैं। सम्भव है कि इन चहेते दरबारियों पर हुए चौधरी सुनील कुमार जाखड़ के शाब्दिक हमलों ने मुख्यमन्त्री को कुछ ज्यादा ही विचलित कर दिया हो और उन्होंने इसका बदला अपने चिर परिचित अन्दाज में ले लिया। फिलहाल इस घटना को लेकर पंजाब प्रदेश कांग्रेस में खूब चर्चा का दौर जारी है। राकेश सैन
एमपी के बाद पंजाब कांग्रेस में यादवी घमासान