विश्लेषणः दुनिया के लिए खतरे की घंटी है जैविक हथियार

कोरोना से जूझ रही दुनिया में संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी के बाद हड़कंप मच गया है। बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एतानियो गुतारेस ने कहा था कि आतंकी मौके का फायदा उठाकर जैविक हथियारों से हमला कर सकते हैंइसे देखते हुए देशों ने अपने यहां चौकसी बढ़ा दी है। जुलाई, 2018 में देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर परिकर ने डीआरडीओ के कार्यक्रम में खुफिया एजेंसियों से प्राप्त सूचना के आधार पर कहा था कि आतंकवादी संगठनों द्वारा देश में जैविक और रासायनिक आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जैविक हथियार ऐसे सूक्ष्मजीवी जैसे वायरस, बैक्टीरिया, फंगी और अन्य हानिकारक तत्व हैं जिन्हें पैदा किया जाता है और जानबूझ कर फैलाया जाता हैइसका उद्देश्य इंसानों, पशुओं और पेड़- पौधों की हत्या करना या उनमें बीमारी पैदा करना होता है। बॉयोलॉजिकल एजेंट जैसे एंथ्रेक्स, बोटूलिनम टॉक्सिन और प्लेग आदि किसी भी देश के लिए बड़ा संकट पैदा कर सकते हैं। प्राकृतिक रूप से पनपे रोगजनक विषाणुओं की वजह से मानव जाति का बहुत नुकसान हुआ है। 1918 में पूरे विश्व में एच। एन] वायरस ने तांडव किया जिसमें 5 करोड़ लोग मारे गएवहीं विश्व इतिहास में ऐसी घटनाएं हैंजिनमें एक राष्ट्र ने दूसरे राष्ट्र के विरूद्ध जैविक हथियारों का इस्तेमाल कियाजैविक हथियार से बहुत कम समय में बहुत ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है। इन हथियारों से किसी खास टारगेट या व्यापक जन समुदाय को निशाना बनाया जा सकता है। घातक जीवाणु, विषाण, कीटाणु और फफूंद जैसे एजेंटों के जरिए जब जानलेवा संक्रमणों को हमले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो इसे जैविक हमला माना जाता है। सैन्य संघर्ष में जैविक हथियारों का प्रयोग युद्ध अपराध माना गया है। परमाणु और रासायनिक हथियारों की तरह ही जैविक हथियारों को भी जनसंहारक हथियारों की श्रेणी में रखा गया है। इनसे हमलावर किसी एक व्यक्ति से लेकर पूरी आबादी को निशाना बना सकता है। प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी और द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने अपने शत्रु राष्ट्रों के विरूद्ध जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया। पूरे विश्व से पोलियो एवं चेचक का खात्मा हो चुका है परंतु बहुत से देशों के पास आज भी इन रोगों के रोगजनक जीवाणु सुरक्षित हैं। सोच कर देखिए यदि ये जीवाणु आतंकवादियों के हाथ में आ गए तो क्या मानव सुरक्षित रह पाएगा? जैविक हथियार के इस्तेमाल को रोकने के लिए विश्व बिरादरी ने अनेक संधियां की। 1874 में कसेल्स और 1899 का हेग का घोषणा पत्र तैयार किया गया और विषैले हथियारों का युद्ध में इस्तेमाल न करने का प्रण लिया गया। इसके पश्चात प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1925 में जिनेवा में एक और संधि हुई परंतु इस संधि को द्वितीय विश्व युद्ध के पहले तक किया। 1969 में संयुक्त राष्ट्र के प्रयास के पश्चात वर्ष 1972 से राष्ट्रों ने एक और संधि पर हस्ताक्षर करना शुरू किया जिस पर 1975 तक 183 देशों ने हस्ताक्षर करके यह माना कि पूरे विश्व में जैविक एवं रासायनिक हथियारों का युद्ध में बिलकुल भी उपयोग नहीं होना चाहिए हालांकि अभी तक इस संधि को इस्राइल, सूडान और नामीबिया जैसे देशों ने मंजूरी नहीं दी है। इन सभी संधियों में इस बात का कोई प्रावधान नहीं है कि यदि कोई देश चोरी छिपे रासायनिक एवं जैविक हथियारों का निर्माण करता है तो उसके विरूद्ध सत्यापन की प्रक्रिया क्या होगी या उस राष्ट्र को ऐसा न करने के लिए कैसे बाध्य किया जाएगा? जैविक हथियार सस्ता और घातक है। जैविक हथियार बनाने में पारंपरिक हथियारों के मुकाबले ०.०5 प्रतिशत ही लागत आती है। संक्रामक तत्व अलग- अलग सतहों और व्यक्ति में 3 से 7 दिन तक जीवित रह सकते हैं। जैविक हथियारों का तीन तरह से वार होता है। पहला, हमलावर खाने-पीने की चीजों, फसलों और जलस्रोतों में जैविक हथियार मिला सकता है। दूसरा, हथियार प्रणाली (पाउडर बम, कीट बम, स्प्रे आदि) में संक्रामक तत्वों, जहरीले पदार्थों का प्रयोग करना संभव है। तीसरा, वायरस से संक्रमित व्यक्ति या कपड़े और पत्र भेजकर भी बड़ी आबादी को संक्रमित करना मुमकिन है। जैविक हथियार खतरनाक क्यों हैं। जैविक हमले का असर सामने आने में समय लगता है, इसलिए इसे भांपना आसान नहीं होता। यही नहीं, ऐसे हमले में संक्रमण का प्रसार उन लोगों में भी हो सकता है जो निशाने पर होते ही नहीं हैं। प्रयोगशाला में शोध के दौरान मामूली चूक से शोधकर्ता खुद वायरस की चपेट में आ सकता है जैसा इबोला के मामले में हुआ। उससे बाहरी लोगों में भी संक्र मण फैलाने का खतरा रहता है। जैविक हथियारों से जैव आतंकवाद का खतरा बना हुआ है। 170 देशों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। जैविक हथियारों की पहचान मुश्किल होती है। इस्तेमाल आसान और उत्पादन बेहद किफायती होता है। व्यापक स्तर पर असर उभरने में समय लगता है। ऐसे में जैव आतंकियों के लिए जांच एजेंसियों से बचना आसान हो जाता है। बड़े क्षेत्रफल में भीषण तबाही मचाने की क्षमता होती है इसलिए आतंकी इस्तेमाल का जोखिम ज्यादा होता है। देश के चुनिंदा जीव विज्ञानी, चिकित्सक, वैज्ञानिक, स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों का निर्माण करने वाली कंपनियां पशु चिकित्सकों और औषधि विज्ञानियों की टीम का गठन करके जैविक आतंकवाद को रोकने की सभी प्रकार की रणनीति पर कार्य होना चाहिए। समय का तकाजा है कि विश्व के सभी देशों को एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर करने चाहिए जिस संधि के द्वारा आतंक का पोषण करने वाले एवं जैविक हथियार बनाने वाले देशों का सभी तरह से बहिष्कार किया जा सके। नरेंद्र देवांगन